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प्राचीन कला केन्द्र के प्रमाण पत्रों पर आपत्ति जताना सुप्रीम कोर्ट की अवमानना – पंडित राम नरेश राय ने कहा सिरफिरों की कमी नहीं, अफवाह और भ्रामक सूचना या खबर पर ध्यान न दें छात्र अभिभावक

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समस्तीपुर। (एसके राजा) प्राचीन कला केंद्र द्वारा प्रदत्त प्रमाण पत्र की वैधता पर सवाल उठाना सर्वप्रथम माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उस निर्देश की अवमानना है, जिसमें प्राचीन कला केन्द्र के प्रमाण पत्रों को स्नातक व स्नातकोत्तर के समकक्ष करार दिया गया था। लगभग हर वर्ष साल में एक बार इस तरह का भ्रामक बयान दे कर शिक्षा विभाग या किसी नियोजन इकाई के पदाधिकारी या फिर कोई व्यक्ति क्या साबित करना चाहता हैं यह समझ से परे है। उक्त बातें प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से संबद्ध हसनपुर के सकरपूरा स्थित बृजकिशोर पांचू गोपाल संगीत सदन के प्राचार्य सह केन्द्राधीक्षक पंडित राम नरेश राय ने कही है।

उन्होंने बताया कि मेरे शिष्यों से मुझे जानकारी मिली है कि बिहार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष को लिखा गया एक पत्र इन दिनों तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें प्राचीन कला केंद्र चंडीगढ़ द्वारा जारी प्रमाणपत्र को अमान्य बताया गया है। जिससे एक बार फिर छात्रो अभिभावकों में भ्रम और असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई है। यह बेहद अफसोस जनक है। उक्त पत्र पर प्रतिक्रिया देते हुए श्री राय ने कहा कि हर वर्ष किसी न किसी समाचार पत्र में एक बार इस तरह की भ्रामक खबर प्रकाशित करने का रिवाज बन गया है।

कभी कोई पदाधिकारी कुछ इस तरह की टिप्पणी कर देता है, तो कभी कोई कुछ भी अखबार और फेसबुक आदि पर लिख देता है, यह बेहद शर्मनाक और निंदनीय है। पदाधिकारियों सहित तमाम लोगों को ऐसे अनर्गल बयान देने से बचना चाहिए। इससे छात्र- छात्रा व अभिभावक भ्रमित होते हैं। उन्होंने कहा कि यह पत्र प्रथम दृष्टि में फर्जी प्रतीत होता है क्योंकि इसमें न कोई तारीख अंकित है, न आवेदक का विवरण ही लिखा हुआ है।

उन्होंने कहा कि यदि पत्र सही है तो पत्र लिखने वाला कुपढों की जमात का है जिसने सिर्फ अपनी भडास निकाली है, उसने न माननीय सर्वोच्च न्यायालय की रिपोर्ट पढी है, न यूजीसी का पत्र पढा है। अगर पढा है तो आधा अधूरा पढ-समझ कर ही विद्वान बन रहा है। पंडित राय ने कहा कि पत्र लेखक को यह भी नहीं पता है कि देश में कितने प्रकार के शिक्षण संस्थान सक्रिय हैं। उन्हें यह जान लेना चाहिए कि प्राचीन कला केंद्र सहित इस तरह की सभी संस्थायें मानक संस्थान हैं जो भारतीय कला संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन केलिए प्रतिबद्ध और एसआरए 1860 (20/1) के तहत संचालित हैं।

बताते चलें कि अंजू कुमारी बनाम बिहार सरकार के मामले में फैसला सुनाते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने प्राचीन कला केंद्र के संगीत विशारद को स्नातक एवं संगीत भास्कर को स्नातकोत्तर के समकक्ष माना है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद किसी अदालत ने इस संबंध में कोई आदेश जारी नही किया है। पत्र लिखने वाले ने माननीय उच्च न्यायालय के जिस आदेश का जिक्र किया है सुप्रीम कोर्ट का आदेश उस के बाद आया था। साथ ही यूजीसी ने कभी अपने किसी पत्र में प्राचीन कला केंद्र के प्रमाण पत्र को अमान्य करार नही दिया है बकायदा मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने भी विभिन्न दैनिक पत्रों में इस आशय की विज्ञप्ति प्रकाशित करवाई है।

देश के लानामिविवि, मगध विवि, बीआरए बिहार विवि, टी एमयू भागलपुर सहित दर्जनाधिक विश्व विद्यालय व बिहार सरकार सहित कई राज्य सरकारों ने प्राचीन कला केंद्र के प्रमाणपत्र को मान्यता दे रखी है। जिसके आधार पर हजारों लोग संगीत शिक्षक और प्राध्यापक के रूप के आज भी योगदान कर रहे हैं। उन्होंने छात्रों व अभिभावकों से अपील करते हुए कहा कि किसी भ्रामक पत्र या खबर पर छात्र छात्राओं को न ध्यान देने की जरूरत है, और न ही परेशान होने की कोई आवश्यकता है।