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समस्तीपुर। बदलते परिवेश में लोगों की जिंदगी की रफ्तार तेज हो गयी है। हाईटेक रूपी इस दुनिया ने लोगों को अपनी दिनचर्या भी बदलने को मजबूर कर दिया है। भाग दौड़ जिदंगी में ना तो खाने का समय निर्धारित है और ना ही काम करने के लिये ही समय निर्धारित है। नतीजतन लोग तरह-तरह की बीमारी के शिकार हो रहे हैं। खासकर मधुमेह व बीपी जैसी समस्या लगभग सभी घरों में अपनी जगह बना चुकी है। इसका दुष्प्रभाव अब बच्चों पर भी पड़ने लगा है।
इसके कारण वयस्क के साथ-साथ बालक व किशोर भी मधुमेह जैसे बीमारी के शिकार हो रहे हैं। बच्चा, किशोर व युवाओं में मधुमेह होना गंभीर समस्या बन रही है। इसके कई कारण हैं। इस संबंध मे एसकेएमसीएच के डॉ. राजेंद्र कृष्ण ने बताया कि कुछ बच्चों बीमारी होती है। इसके लिये जन्म के बाद ही बच्चों के वजन पर ध्यान देने की जरुरत है। अगर प्रसव के बाद बच्चे का वजन तीन किलो से अधिक है तो निश्चित रूप से मधुमेह की जांच करानी चाहिये। डॉक्टर ने कहा कि पहले स्कूलों में खेल मैदान हुआ करता था।
प्रत्येक दिन बच्चों के बीच तरह-तरह के खेल होते थे, जिससे बच्चे मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते थे, लेकिन अब स्कूलों में खेल मैदान का अभाव हो गया है। भौतिक सुविधा के कारण बच्चे, किशोर व युवा थोड़ी दूर भी पैदल नहीं चलना चाहते हैं। उन्हें बाइक या वाहन से स्कूल पहुंचाया जाता है। ऐसे में शारीरिक मेहनत नहीं होने से बीमार होना लाजिमी है।डॉ राजेंद्र कृष्ण ने कहा कि आजकल के बच्चों में बीमारी होने का प्रमुख कारण स्मार्टफोन वीडियो गेम व कार्टून फिल्म भी है। बच्चे दिनभर इसी घर में बैठक इसी गेम में लगे रहते हैं।
जिसके कारण शारीरिक मेहनत होने से बच्चे में मोटाया, वजन बढ़ना, पेंक्रियाज ग्रंथी में गड़बड़ी के कारण लगती है।जिसके कारण मधुमेह की भी शिकाय भी आने लगती है। जबकि घर पर इन्हें असंतुलित पौष्टिक भोजन, जंक फूड, चॉकलेट, बिस्कुट आदि बार बार दिया जाता है जो खतरनाक भी है। इसकी कोई सीमा निर्धारित नहीं रखी जाती है। दूध में तरह-तरह के फूड मिलाकर दिया जाता है।
सौ मरीज बच्चों में चार से पांच बच्चों को मधुमेह की बीमारी होती है। समस्तीपुर शहर के डॉ राजेंद्र कृष्ण ने बताया कि भूख अधिक लगना एवं बार-बार पेशाब आना, इसका मुख्य कारण है। अगर बच्चों में ऐसा लक्षण है तो तत्काल फिजिशियन से सलाह लेने की जरुरत है। उन्होंने बताया कि सामान्य तौर पर ब्लड सुगर का लेवर 100 से 140 होता है। बच्चों की जांच में लेवल औसतन दो सौ से तीन सौ होता है। आंकड़े के अनुसार दौ सौ मरीजों में चार से पांच बच्चे मधुमेह से पीड़ित मिल रहे हैं। इसके लिये जागरुकता, संतुलित भोजन, शारीरिक मेहनत बहुत जरुरी है।