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जीविका दीदियों की राखियों से सजेगी भाइयों की कलाई, मिथिला पेंटिंग वाली इको-फ्रेंडली राखियां मचा रहीं बाजारों में धूम
दूरबीन न्यूज डेस्क। दरभंगा जिले की जीविका दीदी नाबिता झा द्वारा बनाई गई मिथिला पेंटिंग से सजी इको-फ्रेंडली राखियां देश-विदेश के बाजारों में लोकप्रियता बटोर रही हैं।
खादी पेपर,लकड़ी और प्राकृतिक रंगों से बनी इन राखियों में न केवल सौंदर्य है,बल्कि मिथिला की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की झलक भी है।
घूंघट प्रथा और चारदीवारियों तक महिलाओं को सीमित रखने वाली पारंपरिक सीमाओं में बंधे समाज से निकलकर नाबिता झा ने जीविका के सहयोग से न सिर्फ घर की चौखट पार की,बल्कि अपनी प्रतिभा को नई उड़ान दी और मिथिला की कला को वैश्विक मंच पर पहुंचाया।
सदर प्रखंड के कंसी गाँव की भगवती जीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं नाबिता झा वर्षों से मिथिला पेंटिंग के ज़रिए महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं। इस वर्ष उन्होंने राखी पर्व को एक सुनहरे अवसर के रूप में देखा और कई जीविका दीदियों को राखी निर्माण व मिथिला पेंटिंग का प्रशिक्षण दिया।
इस पहल से जहां स्थानीय बाजारों में इन पारंपरिक राखियों की मांग बढ़ी है,वहीं कई महिलाओं को स्थायी स्वरोजगार भी मिला है।
नाबिता झा की प्रेरणा उनकी मां बौआ देवी हैं,जो मधुबनी जिले के प्रसिद्ध जितवारपुर गाँव की निवासी और पद्मश्री सम्मानित कलाकार हैं। उन्हें 1976 में राष्ट्रीय पुरस्कार और 2017 में पद्मश्री मिला था। नाबिता बचपन से ही मां के संरक्षण में मिथिला पेंटिंग सीखती रहीं और आज उसी कला को नए रूपों में प्रस्तुत कर रही हैं।
नाबिता कहती हैं, “मां ने सिखाया कि मिथिला पेंटिंग केवल चित्रांकन नहीं, बल्कि एक संस्कृति है। मैंने सोचा क्यों न इसे आधुनिक उत्पादों से जोड़कर नया बाज़ार तैयार किया जाए।”
जीविका के सहयोग से उन्हें राज्य और राष्ट्रीय स्तर की कई प्रदर्शनियों में स्टॉल लगाने का मौका मिला। उनकी राखियों, हस्तनिर्मित डायरियों, दीवार सज्जा और अन्य कलाकृतियों को दिल्ली,पांडिचेरी, कर्नाटक, महाराष्ट्र के साथ-साथ इंग्लैंड और बार्सिलोना से भी ऑर्डर मिले हैं।
नाबिता कहती हैं, “मेरी राखियों की सबसे बड़ी खासियत है कि ये पूरी तरह इको-फ्रेंडली होती हैं और जब लोग इन्हें देखते हैं, तो उन्हें सिर्फ राखी नहीं,मिथिला की आत्मा दिखाई देती है।”
नाबिता ने दर्जनों महिलाओं को प्रशिक्षण देकर कला और बाज़ार के बीच की दूरी को पाटने का कार्य किया है। उनका मानना है कि यदि मिथिला पेंटिंग को पारंपरिक कैनवस से निकालकर कपड़े, स्टेशनरी, राखी, गिफ्ट आइटम्स जैसी चीजों से जोड़ा जाए तो हजारों महिलाएं इससे सम्मानजनक आजीविका पा सकती हैं।
मधुबनी की रुचि झा ने भी नाबिता से प्रेरणा लेकर यह कला सीखी और मिथिला हाट में स्टॉल लगाकर एवं अमेज़न जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अपने उत्पाद बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रही हैं। उनके साथ कंचन कुमारी, नीतू कुमारी जैसी और महिलाएं भी इस कला को सीख रही हैं।
डीपीएम डॉ. ऋचा गार्गी ने नाबिता झा की प्रशंसा करते हुए कहा, “मुझे बहुत खुशी है कि नाबिता दीदी ने जीविका से जुड़कर अपनी कला से देश-विदेश में सम्मान अर्जित किया है।
उन्होंने माननीय प्रधानमंत्री,गृहमंत्री समेत कई बड़े लोगों से मुलाकात कर अपनी कला का प्रदर्शन किया है,जो गौरव की बात है। उन्होंने जीविका दीदियों द्वारा निर्मित राख़ियों के बारे में कहा ये राखियां पर्यावरण के प्रति जागरूकता,महिला सशक्तिकरण और लोककला के संरक्षण का सुंदर उदाहरण बन चुकी हैं।
जीविका से मिली नई पहचान और अवसरों के लिए आभार प्रकट करते हुए नाबिता झा और रुचि झा ने डीपीएम डॉ. ऋचा गार्गी को राखी बाँधी और उनके मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन के प्रति हार्दिक धन्यवाद व्यक्त किया।