दूरबीन न्यूज डेस्क। साहित्य में अच्छे विचारों का हो समावेश : राज्यपाल। साहित्य में अच्छे विचारों व इतिहास को सामने रखने वाली कृतियों का समावेश हो। उपन्यास, कविता, काव्य, नाटक, फिल्म की पटकथा आदि कृतियां जो समाज का प्रबोधन कर सके, समाज के सामने सामाजिक विषयों का चिंतन-मंशन रख सके, उन्हें साहित्य माना जाना चाहिए। ये बातें राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के खेल मैदान में आयोजित तीन दिवसीय चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव का शुक्रवार को उद्घाटन करते हुए कही।
राज्यपाल ने कहा कि आने वाला समय हमारे राष्ट्रवादी विचारों को, तथ्यों को सामने रखने का समय है। यह चिंतन का विषय है कि हम किस ढंग से इसको आगे रखेंगे। इस प्रकार के साहित्य सम्मेलन हर प्रदेश में होने की आवश्यक है। उन्होंने कहा कि देशभर में ऐसे बहुत सारे सम्मेलन होते हैं जहां बहुत सारी चर्चाएं जानबूझकर की जाती हैं। जयपुर और हिमाचल प्रदेश के सोलन में होने वाले सम्मेलनों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इन सम्मेलनों को लिटरेरी फेस्टिवल कहा जाता है, लेकिन अनेक बार यहां भारत विरोधी विचारधाराएं सामने आती हैं।
ऐसे आयोजनों में भारत विरोधी विचारों का पनपना उनका स्वाभाविक कार्यक्रम होता है। इन सम्मेलनों में यह सामने लाने का प्रयास होता है कि भारत की संस्कृति मानव विरोधी है। इन सबको सामने रखकर हमें विचार करना होगा कि आने वाले समय में हमारा विचार, विमर्श व चिंतन का प्रवाह किस दिशा में जाएगा। चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव इस दिशा को तय करने वाला है। राज्यपाल ने कहा कि यह सम्मेलन केवल हिंदी साहित्य का ही सम्मेलन नहीं होना चाहिए।
अनेक भाषाओं में जो अच्छी साहित्यिक कृतियां, काव्य, कविता, लेखन, नाटक आदि हैं, इन सबको यहां सम्मिलित करने का प्रयास होना चाहिए। तब हमें पता चलेगा कि दक्षिण, पूर्वी व पश्चिमी भारत में अलग-अलग भाषाओं में क्या हो रहा है। तब जाकर भारतीय भाषाओं का अभिजात्य स्वरूप सामने आएगा। बिहार की भाषाओं की चर्चा करते हुए राज्यपाल ने कहा कि भोजपुरी जैसी भाषाओं में अश्लील भाग आने लगे हैं जिन्हें पुन: एक बार शुद्ध करके राष्ट्रवादी विचारों की भाषा बनाने की आवश्यकता है।